chhota jadugar by Jayshankar prasad
महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
प्रश्न 1.छोटा जादूगर किसको कहा गया है?
उत्तर: छोटा जादूगर तेरह- चौदह वर्ष के एक बालक को कहा गया है जो खेल-तमाशे दिखाकर अपनी जीविका चलाता था।
प्रश्न 2. छोटे जादूगर ने कितने खिलौनों पर गेंद से निशाना लगाया?
उत्तर: छोटे जादूगर ने बारह खिलौनों पर गेंद से निशाना लगाया।
प्रश्न 3. लेखक ने छोटे जादूगर की झोंपड़ी में क्या देखा?
उत्तर: लेखक ने छोटे जादूगर की झोंपड़ी में एक स्त्री को देखा। वह चिथड़ों से लदी हुई काँप रही थी। उसे देखकर यह लग रहा था कि उसकी तबियत बहुत खराब है। छोटा जादूगर ने उसके ऊपर कंबल डालकर उसके शरीर से चिपटते हुए कहा “माँ”। लेखक की आँखों से आँसू निकल पड़े।
प्रश्न 4. कहानी के आधार पर छोटे जादूगर की दशा का वर्णन कीजिए।
उत्तर: छोटा जादूगर एक तेरह-चौदह वर्ष का बालक था। उसकी दशा बहुत दयनीय थी। उसके परिवार में माता-पिता थे। पिता तो देश की खातिर जेल में चले गए थे। उसकी माँ बीमार रहती थी। पैसे न होने के कारण अस्पताल वालों ने उसे निकाल दिया था। वह छोटा बालक सड़क के किनारे खेल-तमाशा दिखाया करता था। अपनी माँ की इतनी सेवा करने के बावजूद अंत में उसकी माँ का देहांत हो गया और वह इस संसार में अकेला रह गया।
प्रश्न 5. क्या आपने कभी जादू का खेल देखा है। एक जादूगर कौन-कौन से खेल दिखाता है? अपने अनुभव के आधार पर लिखिए।
उत्तर: एक जादूगर विभिन्न प्रकार के खेल दिखाता है। वह अपनी हैट में एक सेब रखकर उसको मुर्गी बना देता है। और कागज के टुकड़ों को इकट्ठा करके सुंदर फूल बना देता है। जादूगर अपने जादू से किसी भी चीज को ऊपर या नीचे भी कर देता है।
प्रश्न 6. छोटे बच्चों को विभिन्न प्रकार के कामों में लगाना बालश्रम कहलाता है। बाल मजदूरी कानूनी तौर पर मना है। क्या इस कहानी में छोटे बालक का खेल दिखाना उचित माना जाएगा? अपनी कक्षा में इसकी चर्चा करें।
उत्तर: यह बात सही है कि बाल मजदूरी कानूनी तौर पर जुर्म है लेकिन छोटे जादूगर में बालक का श्रम उचित है। क्योंकि इस कहानी में उसके पिता देश की खातिर जेल में बंद है और उसकी माँ बीमार है, इसलिए उसके कंधों पर पूरे घर का दायित्व आ जाता है। अगर वह खेल नहीं दिखाता तो किस प्रकार अपना वह अपनी माँ का पालन-पोषण करता। दुनिया में इतने अच्छे इंसान भी तो नहीं हैं जो उसकी जिम्मेदारी उठा सकते। इसीलिए ‘छोटा जादूगर’ कहानी में बालक का श्रम उचित है।
प्रश्न 7. लेखक के यह पूछने पर कि तुम तमाशा देख रहे हो? छोटे जादूगर के मुँह पर कैसी हँसी थी?
उत्तर: इस बात से छोटे जादूगर के मुँह पर तिरस्कार की हँसी फूट पड़ी।
प्रश्न 8. छोटा जादूगर खेल-तमाशा दिखाकर क्या करना चाहता था?
उत्तर: छोटा जादूगर खेल-तमाशा दिखाकर अपनी माँ की सेवा और अपना पेट भरना चाहता था।
प्रश्न 9. लेखक की पत्नी से प्राप्त एक रुपये से छोटा जादूगर क्या खरीदना चाहता था?
उत्तर: लेखक की पत्नी से प्राप्त एक रुपये से छोटा जादूगर पेटभर पकौड़ी खाना और अपनी माँ के लिए सूती कंबल। खरीदना चाहता था।
प्रश्न 10. माँ ने छोटे जादूगर को जल्दी आने के लिए क्यों कहा था?
उत्तर: माँ ने छोटे जादूगर को जल्दी आने के लिए इसलिए कहा क्योंकि उन्हें अपनी मृत्यु समीप आने का आभास हो रहा था।
लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. लेखक ने छोटे जादूगर को कैसी वेश-भूषा में देखा?
उत्तर: लेखक ने देखा कि उसके गले में फटे कुर्ते के ऊपर से एक मोटी-सी सूत की रस्सी पड़ी थी और जेब में कुछ ताश के पत्ते थे। उसके मुँह पर गंभीर विषाद के साथ धैर्य की रेखा थी। जिसमे अभाव में भी संपूर्णता थी।
प्रश्न 2. “मुझे शरबत न पिलाकर आपने मेरा खेल देखकर मुझे कुछ दे दिया होता, तो मुझे अधिक प्रसन्नता होती। छोटे जादूगर ने लेखक से ऐसा क्यों कहा?
उत्तर: छोटे जादूगर ने लेखक से ऐसा इसलिए कहा क्योंकि उस वक्त उसे शरबत नहीं बल्कि अपनी माँ के इलाज के लिए दवा व पथ्य की आवश्यकता थी साथ ही उसे अपने लिए भोजन की जरूरत थी।
प्रश्न 3. लेखक की दूसरी मुलाकात छोटे जादूगर से कहाँ हुई?
उत्तर: लेखक की छोटे जादूगर से दूसरी मुलाकात कलकत्ता के सुंदर वनस्पति उद्यान में हुई थी। जहाँ एक छोटी-सी झील के किनारे घने वृक्ष की छाया में लेखक अपनी मंडली के साथ बैठे जलपान कर रहे थे। तभी अचानक वहाँ छोटा जादूगर आ गया।
प्रश्न 4. लेखक की कलकत्ता से जाने से पहले इच्छा क्या थी?
उत्तर: लेखक को अपने कार्यालय में समय से पहुँचना था। उसका मन कलकत्ता से ऊब गया था। फिर भी चलते-चलते लेखक को एक बार उद्यान को देखने की और छोटे जादूगर से मिलने की इच्छा थी।
दीर्घ उत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1. छोटे जादूगर ने लेखक की श्रीमती के कहने पर अपना खेल किस प्रकार दिखाया?
उत्तर: छोटे जादूगर ने खेल आरंभ किया। उस दिन छोटे जादूगर के खेल का रंगमंच अनूठे प्रकार से सजा था कार्निवाल के सभी खिलौने उसके खेल में अपना अभिनय करने लगे। बिल्ली रूठने लगी। भालू मनाने लगा। बंदर घुड़कने लगा। गुड़िया का ब्याह हुआ। गुड्डा वर काना निकला। ताश के सब पत्ते लाल हो गए, फिर सब काले हो गये। गले की सूत की डोरी टुकड़े-टुकड़े होकर जुड़ गयी। लट्टू अपने आप नाच रहे थे। लड़के की वाचालता से ही अभिनय हो रहा था। सब हँसते-हँसते लोट-पोट हो गये।
प्रश्न 2. छोटा जादूगर कैसा निशानेबाज था?
उत्तर: मेले में घूमते-घूमते लेखक ने छोटे जादूगर से कहा, अच्छा चलो निशाना लगाया जाए। फिर वे दोनों उस जगह पर पहुँचे जहाँ खिलौनों को गेंद से गिराया जाता था। लेखक ने बारह टिकट खरीदकर उस लड़के को दे दिये। छोटा जादूगर पक्का निशानेबाज निकला। उसकी कोई गेंद खाली नहीं गई। आस-पास खड़े लोग देखकर दंग रह गए। छोटे जादूगर ने बारह खिलौनों को बटोर लिया। किंतु उन सबको एक साथ उठाना उसके बस में नहीं था। इसलिए कुछ जेब और कुछ लेखक के रूमाल में रख लिये गये। इससे सिद्ध होता है कि छोटा जादूगर पक्का निशानेबाज था।
ख) श्रीमान ने छोटे जादूगर को पहली भेंट के दौरान किस रूप में देखा था ?
उत्तर – लेखक बड़े दिन की छुट्टी में कलकत्ता गए थे। वहीं पर कार्निवल के मैदान में एक छोटे फुहारे के पास छोटे जादूगर को चुपचाप शरबत पीने वालों को देखते हुए देखा था। जिसके गले में फटे कुरते के ऊपर एक मोटी-सी सूत की रस्सी पड़ी थी और जेब में कुछ ताश के पत्ते थे। उसके मुँह पर गम्भीर विषाद के साथ धैर्य की रेखा थी।
(ग) “वहाँ जाकर क्या कीजिएगा ?” छोटे जादूगर ने ऐसा कब कहा था ?
उत्तर : लेखक ने जब छोटे जादूगर से पूछा उस परदे में क्या है? तुम वहाँ गए थे? लड़के ने बोला वहाँ जाने से टिकट लगता है। जो मेरे पास नहीं है। तब लेखक कहते हैं, चलो मैं तुम्हें ले चलता हूँ। तब लड़के ने कहा था वहाँ जाकर क्या कीजिएगा। वह तो खिलौने पर निशाना लगाना चाहता था।
(घ) निशानेबाज के रूप में छोटे जादूगर की कार्य कुशलता का वर्णन करो।
उत्तर – लेखक छोटे जादूगर के लिए बारह टिकट खरीदकर दिए थे। वह पक्का निशानेबाज निकला। उसका कोई गेंद खाली नहीं लगा गया। सभी देखने वाले ढंग रह गए। इस तरह निशाना तो बड़े लोग भी नहीं पाते, जितना यह छोटा-सा लड़का निशाना लगा रहा था। उसकी क्रिया कौशल देखकर सभी उसकी तारीफ कर रहे थे।
(ङ) कलकत्ते के बोटानिकल उद्यान में श्रीमान श्रीमती को छोटा जादूगर किस रूप में मिला था ?
उत्तर : कलकत्ते के सुरम्य बोटानिकल उद्यान में लेखक और उनकी पत्नी झील के किनारे एक वृक्ष की छाया में बैठकर बात कर रहे थे कि छोटा जादूगर दिखाई पड़ा। उसके हाथ में एक खादी का झोला था। साफ कपड़े पहना था। सिर पर उनका रूमाल सूत की रस्सी से बँधा हुआ था। मस्तानी चाल से झूमता हुआ आकर कहने लगा- बाबूजी नमस्ते, आज कहिए तो खेल दिखाऊँ ?
(च) कलकत्ते के बोटानिकल उद्यान में श्रीमान ने जब छोटे जादूगर को ‘लड़के’ कहकर संबोधित किया, तो उत्तर में छोटे जादूगर ने क्या कहा?
उत्तर: जादूगर का खेल देखकर लेखक की पत्नी ने धीरे से उसे एक रुपया दे दिया। लड़का बहुत खुश हुआ। एक रुपया देने के कारण लेखक को थोड़ा गुस्सा आया इसलिए छोटा जादूगर को ‘लड़के !’ कहकर संबोधित किया। तब लड़के ने कहा मुझे छोटा जादूगर कहिए, यही मेरा नाम है। इसी से मेरी जीविका चलती है।
(छ) “आज तुम्हारा खेल जमा क्यों नहीं ?”- इस प्रश्न के उत्तर में छोटा जादूगर ने क्या कहा ?
अथवा,
छोटे जादूगर के (आज) खेल न जमने का क्या कारण है ?
उत्तर : उस दिन भी छोटे जादूगर सड़क के किनारे बैठकर अपना खेल दिखा रहा था, पर उसकी वाणी में स्वभावसुलभ प्रसन्नता नहीं था। वह औरों को तो हँसा रहा था पर स्वयं उदास था। खेल समाप्त होने के बाद जब लेखक ने कहा- आज तुम्हारा खेल जमा क्यों नहीं, तब लड़के ने कहा- माँ बीमार है। आज तुरंत चले आने को कहा है और बोली मेरा समय आ गया है।
(ज) छोटे जादूगर के चरित्र की किन्हीं तीन विशेषताएं लिखो।
उत्तर – छोटा जादूगर प्रसाद जी की एक मनोहर कहानी है छोटा जादूगर जो एक तेरह चौदह साल का लड़का जो अपनी आर्थिक विपन्नता और प्रतिकूल परिस्थितियों से संघर्ष करता है। अपने पावों पर खड़ा होता है। उसका व्यवहार सबके लिए मधुर था। आर्थिक परिस्थितियों में भी स्वाभिमानी है। गंभीर विषाद में भी धैर्य के साथ काम करता है। लेखक के शरबत पीलाने पर कहा था शरबत न पीलाकर आप मेरा खेल देखकर मुझे कुछ पैसा दिया होता तो मुझे अधिक प्रसन्नता होती। मां के लिए दवा-दारू ले सकता। इसी से पता चलता है कि वह कितना आत्मस्वाभिमानी है।
प्रश्न 4. संक्षिप्त उत्तर दो (लगभग 50 शब्दों में )
(क) प्रसाद जी की कहानियों की विशेषताओं का उल्लेख करो l
उत्तर : प्रसाद जी उत्कृष्ट कहानीकार थे। इनकी कहानियों में भारत का अतीत साकार हो उठता है। कहानीकार के रूप में आप भाववादी धारा के प्रवर्तक कहलाएँ। आपकी अधिकांश कहानियों में चारित्रिक उदारता, प्रेम, करुणा, त्याग, बलिदान, अतीत के प्रति मोह से युक्त भावमूलक आदर्श की अभिव्यक्ति हुई है। ‘प्रतिध्वनि’, ‘आकाश ‘दीप’, ‘आंधी’ और ‘इंद्रजाल’ उनके प्रसिद्ध कहानी संग्रह है। उन्होंने अपने समकालीन समाज की आर्थिक विपन्नता, निरीहता, अन्याय और शोषण को भी कुछेक कहानियों में चित्रित किया है।
(ख)” क्यों जी, तुमने इसमें क्या देखा? ” इस प्रश्न का उत्तर छोटे जादूगर ने किस प्रकार दिया था?
उत्तर: क्यों जी, तुमने इसमें क्या देखा। लेखक के पूछने पर जादूगर, निःसंकोच होकर कहने लगा, मैंने सब देखा। यहाँ चूड़ी फेंकते है। खिलौने पर किस तरह निशाना लगाते हैं। तीर से किस तरह नंबर छेदते हैं। उससे अच्छा तो ताश के खेल में दिखा सकता हूँ। वह जादूगर तो बिल्कुल निकम्मा है। मुझे तो सिर्फ खिलौने पर निशाना लगाना अच्छा मालूम हुआ। उसकी वाणी में ही रुकावट न थी।
(ग) ” और तुम तमाशा देख रहे हो ?” लेखक के इस प्रश्न के उत्तर में छोटे जादूगर ने क्या कहा है ?
उत्तर : लेखक के इस प्रश्न के उत्तर में छोटे जादूगर के मुँह पर तिरस्कार की हँसी फूट पड़ी। उसने कहा- तमाशा देखने नहीं, दिखाने निकला हूं। तमाशा दिखाकर कुछ पैसे ले जाऊँगा, तो माँ को पथ्य दूंगा। मुझे शरबत न पिलाकर आपने मेरा खेल देखकर मुझे कुछ दे दिया होता, तो मुझे अधिक प्रसन्नता होती।
(घ) अपने माँ-बाप से संबंधित प्रश्नों के उत्तर में छोटे जादूगर ने क्या-क्या कहा था ?
उत्तर : लेखक के पूछने पर छोटा जादूगर अपने माँ-बाप के बारे में बताया- माँ और बाबूजी है माँ बहुत बीमार है और बाबूजी देश के लिए जेल में है। मैं भी जेल जाना चाहता था, पर माँ के कारण जान पाया। मेरे जाने के बाद माँ को कौन देखेगा। मुझे भी इच्छा होती है, देश की सेवा करने की, पर माँ भी तो मातृभूमि जैसी ही प्यारी है। एक माँ की सेवा न कर पाया तो क्या हुआ अपनी माँ की सेवा तो कर पाऊँगा। मैं यह खेल तमाशा दिखाकर जो कुछ पैसे ले जाऊँगा, तो माँ को पथ्य दूंगा। वह गर्व से बोला था।
(ङ) श्रीमान ने तेरह चौदह वर्ष के छोटे जादूगर को किसलिए आश्चर्य से देखा था?
उत्तर : लेखक उस छोटे से लड़के की बात सुनकर आश्चर्य से उसे देखने लगे। इतनी कम उम्र में ही आर्थिक विपन्नता और प्रतिकूल परिस्थितियों से संघर्ष करना सिखाया। अपने माँ-बाप के प्रति भक्ति, मातृभूमि के प्रति भक्ति, उसका मधुर व्यवहार, देश के लिए बाप को जेल जाने पर वह गर्व महसूस करना। साथ ही तेरह चौदह साल में ही खुद भी देश के लिए जेल जाना चाहता था पर माँ के कारण वह जा न पाया। इस छोटे से लड़के में स्वाभिमान, मातृ भक्ति देखकर लेखक मुग्ध हो जाते। हैं। उनके अभाव में भी संपूर्णता थी।
(च) श्रीमती के आग्रह होने पर छोटे जादूगर ने किस प्रकार अपना खेल दिखाया?
उत्तर : श्रीमती के आग्रह पर छोटे जादूगर के सभी खिलौने उसके खेल में अपना अभिनय करने लगे। बिल्सी रूठती है। भालू उसे मनाता है। बंदर घुड़कने लगा। गुड़िया का ब्याह हुआ। गुड्डा वर काना निकला। यह सब वह खिलौने से अभियन करके दिखा रहा था। लड़के ने अपनी बातों से और खेल दिखाकर सबका मन जीत लिया था।
(छ) हावड़ा की ओर आते समय छोटे जादूगर और उसकी माँ के साथ श्रीमान की भेंट किस प्रकार हुई थी ?
उत्तर : लेखक लताकुंज देखने के बाद जब हावड़ा की ओर मोटर से आ रहे थे तथा रह-रह कर छोटे जादूगर की बात सोच रहे थे, तभी एक झोपड़ी के पास कंबल कांधे पर डाले वह खड़ा था लेखक ने मोटर रोककर उससे पूछा तुम यहाँ कहाँ ? लड़के ने कहा माँ अब यही रहती है। अस्पताल वालों ने निकाल दिया। उसकी बात सुनकर लेखक गाड़ी से उतरकर उस झोड़पी में गए, जहाँ उसकी माँ फटे कपड़ों से लदी हुई काँप रही थी। छोटा जादूगर कंबल को माँ के शरीर पर डालकर चिपकते हुए कहा, माँ यह दृश्य देखकर उनकी आँखों से आँसू निकल पड़े।
(ज) सड़क के किनारे कपड़े पर सजे रंगमंच पर छोटे जादूगर किस मनःस्थिति में और किस प्रकार खेल दिखा रहा था ?
उत्तर : सड़क के किनारे पर सजे रंगमंच पर छोटे जादूगर अपना खेल तो दिखा रहा था, पर आज उसका खेल जमा नहीं। आज वह उदास था। रह-रहकर माँ की याद आ रही थी। माँ ने कहा था, बेटे आज जल्दी आ जाना मेरी अंतिम घड़ी समीप है। इसीलिए आज कुछ विचलित है। वह खेल तो दिखा रहा था पर उसकी आवाज में वह स्वभावसुलभ प्रसन्नता न थी। वह औरों को हँसाने की चेष्टा कर रहा था पर स्वयं भीतर से काँप रहा था।
(झ) छोटे जादूगर और उसकी माँ के साथ श्रीमान की अंतिम भेंट का अपने शब्दों में वर्णन करो।
उत्तर : उस दिन भी छोटा जादूगर सड़क के किनारे अपना खेल दिखा रहा था, पर उसकी आवाज में वह स्वभावसुलभ प्रसन्नता न थी। वहाँ लेखक से लड़के की मुलाकात हुई। लेखक ने जब कहा आज तुम्हारा खेल जमा क्यों नहीं। तब छोटा जादूगर बोला, माँ ने आज जल्दी बुलाया है। माँ ने कहा मेरी घड़ी समीप है। लेखक गुस्सा होते हैं। उसे तुरंत गाड़ी में बैठाकर उसके झोपड़ी के पास पहुँचे। जादूगर दौड़कर झोपड़ी में माँ-माँ पुकारता हुआ घुसा। लेखक भी पीछे थे, किंतु तब तक माँ के मुँह से आधा शब्द ‘वे…’ ही निकला। उसके दुर्बल हाथ उठकर गिर गए। जादूगर माँ से लिपटकर रो रहा था। लेखक भी स्तब्ध हो गए। उनके मुँह से एक आवाज भी न निकली।
(ख) छोटा जादूगर के मधुर व्यवहार एवं स्वाभिमान पर प्रकाश डालो।
उत्तर : छोटा जादूगर प्रसाद जी की एक ऐसी मनोरम कहानी है, जिसमें आर्थिक विपन्नता और प्रतिकूल परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए तेरह चौदह साल के एक लड़के के चरित्र को आदर्शात्मक रूप में उभारा गया है। परिस्थिति की माँग से वह बालक अपने पाँवों पर कैसे खड़ा हुआ। उसके मुँह पर गंभीर विषाद के साथ धैर्य की रेखा है। उसका व्यवहार सबके लिए मधुर था। आर्थिक परिस्थितियों में स्वाभिमानी था। लेखक के शरबत पीलाने पर कहा था- शरबत न पीलाकर आप मेरा खेल देखकर मुझे कुछ पैसा दिया होता, तो मुझे अधिक प्रसन्नता होती। माँ के लिए दवा-दारू ले सकता। इसी से पता चलता है कि वह कितना आत्मस्वाभिमानी था।
(ग) छोटे जादूगर की चतुराई और कार्य कुशलता का वर्णन करो।
उत्तर : छोटा जादूगर मधुर व्यवहार के साथ चालाक, चतुर भी था। अपनी कार्य- कुशलता से खेल दिखाकर सबका मनोरंजन करता था, निशाना तो ऐसे लगाता था, उसके सामने अच्छे-अच्छे निशानेबाज भी चूक जाते हैं उसके खेल में चतुराई थी पर धोखे से पैसा कमाना नहीं चाहता। यह उसकी चारित्रिक उदारता थी। खिलौने को अभिनय करके इतनी कुशलता से खेल दिखाता था कि सब देखकर मुग्ध हो जाते. थे। सबको खेल दिखाकर हँसाता भी था, जिससे पता चलता था कि कार्य कुशलता के साथ-साथ उसमें चतुराई भी थी।
(घ) छोटा जादूगर के देश-प्रेम और मातृ-भक्ति का परिचय दो।
उत्तर – छोटा जादूगर जो तेरह चौदह साल से ही संघर्ष करता हुआ अपने पैरों पर खड़ा होता है। फिर भी वह खुश था। खेल दिखाकर अपनी माँ की सेवा करता, बाप देश के लिए जेल में है। खुद भी जेल जाना चाहता था पर माँ को कौन देखेगा ! उसके अंदर भी देश-प्रेम की भावना थी, पर माँ भी तो मातृभूमि जैसी ही प्यारी है। एक माँ की सेवा न कर पाया तो क्या हुआ। अपनी माँ की सेवा तो कर पाया। उसमें देश-प्रेम और मातृ-भक्ति कूट-कूट कर भरी थी ।
(ङ) छोटे जादूगर की कहानी से तुम्हें कौन-सी प्रेरणा मिलती है।
उत्तर : छोटे जादूगर की कहानी प्रसाद जी की भावनात्मक कहानी है। इस कहानी से हमें प्रेरणा मिलती है कि प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपना धैर्य नहीं खोना चाहिए। जिस प्रकार छोटा जादूगर परिस्थिति से जूझ कर भी धैर्य नहीं खोया, मन दु:खी होने पर भी अपना खेल दिखाकर सबको हँसाता था, पर खुद अंदर ही अंदर माँ के लिए रोता था। इसी से मता चलता है कि स्वाभिमान तथा मातृ-भक्ति उसमें कूट-कूट कर भरी है। इस कहानी में धैर्य, कर्त्तव्य और स्वाभिमान की प्रेरणा मिलती है।
जय शंकर प्रसाद जी का जीवन परिचय
प्रसाद जी का जन्म माघ शुक्ल 10, संवत् 1946 वि० (तदनुसार 30जनवरी 1889ई० दिन-गुरुवार) को काशी के सरायगोवर्धन में हुआ। इनके पितामह बाबू शिवरतन साहू दान देने में प्रसिद्ध थे और एक विशेष प्रकार की सुरती (तम्बाकू) बनाने के कारण ‘सुँघनी साहु’ के नाम से विख्यात थे। इनके पिता बाबू देवीप्रसाद जी कलाकारों का आदर करने के लिये विख्यात थे।
इनका काशी में बड़ा सम्मान था और काशी की जनता काशीनरेश के बाद ‘हर हर महादेव’ से बाबू देवीप्रसाद का ही स्वागत करती थी। किशोरावस्था के पूर्व ही माता और बड़े भाई का देहावसान हो जाने के कारण 17 वर्ष की उम्र में ही प्रसाद जी पर आपदाओं का पहाड़ ही टूट पड़ा। कच्ची गृहस्थी, घर में सहारे के रूप में केवल विधवा भाभी, कुटुबिंयों, परिवार से संबद्ध अन्य लोगों का संपत्ति हड़पने का षड्यंत्र, इन सबका सामना उन्होंने धीरता और गंभीरता के साथ किया। प्रसाद जी की प्रारंभिक शिक्षा काशी में क्वींस कालेज में हुई, किंतु बाद में घर पर इनकी शिक्षा का व्यापक प्रबंध किया गया, जहाँ संस्कृत, हिंदी, उर्दू, तथा फारसी का अध्ययन इन्होंने किया। दीनबंधु ब्रह्मचारी जैसे विद्वान् इनके संस्कृत के अध्यापक थे। इनके गुरुओं में ‘रसमय सिद्ध’ की भी चर्चा की जाती है।
जयशंकर प्रसाद हिन्दी कवि, नाटककार, उपन्यासकार तथा निबन्धकार थे। वे हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। उन्होंने हिन्दी काव्य में एक तरह से छायावाद की स्थापना की जिसके द्वारा खड़ी बोली के काव्य में न केवल कमनीय माधुर्य की रससिद्ध धारा प्रवाहित हुई, बल्कि जीवन के सूक्ष्म एवं व्यापक आयामों के चित्रण की शक्ति भी संचित हुई और कामायनी तक पहुँचकर वह काव्य प्रेरक शक्तिकाव्य के रूप में भी प्रतिष्ठित हो गया।
छोटा जादूगर कहानी का सारांश : –
छोटा जादूगर कहानी का मुख्य पात्र एक छोटा बालक है। वह बालक बहुत गुणी है। वह पुरुषार्थी बालक है। छोटा जादूगर अपनी मां के साथ रहता है उसे जादू की कला आत है तथा जीवन यापन के लिए जादू दिखाकर पैसे कमाता है। वह अति निर्धन है परन्तु कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलता है। वह स्वाभिमानी है । उसके जीवन में अनेक कठिनाइयां है लेकिन वह उन कठिनाइयों से घबराता नहीं है ।लेखक ने जब व्यंग्य किया तब इस बालक ने कहा कि तमाशा देखने नहीं , दिखाने आया हूं। उसमे भरपूर आत्मविश्वास है। वह अपने कौशल में निपुण है। वह एक निर्जीव खिलौने से ऐसा खेल दिखाता है कि सभी हंसते हंसते थक जाते है। उसका सबसे बड़ा गुण है मातृ भक्ति । वह अपनी मां की बहुत देख भाल करता है, मां की सेवा के लिए ही अधिक परिश्रम करता है। उसकी मां की मृत्यु का दृश्य बड़ा करूणा दायक है।
कहानी का उद्देश्य :- छोटा जादूगर के इन मानवीय गुणों का उद्घाटन कर आत्मनिर्भरता और दायित्व बोध का संदेश देना ही कहानी का उद्देश्य है। इस कहानी में एक बालक का माता के प्रति प्रेम, व्यवहार की कुशलता और परिश्रम से जीवन बिताने का वर्णन है।
छोटा जादूगर कहानी का शीर्षक की सार्थकता – इस छोटे जादूगर कहानी में मुख्य पात्र जो है वह छोटा बच्चा है जिस पर घर की जिम्मेवारियां हैं और वह जादू दिखा करके कुछ पैसे कमाता है लेखक जब पहली बार उस छोटे जादूगर से मिलता है तो उस वक्त छोटा जादूगर लेखक से कहता है कि यहां पर सभी बेकार की जादू करते हैं यहां किसी को खेल दिखाना नहीं आता l आप मेरा खेल देखिए मैं इन सब से बेहतर जादू कर सकता हूं इस कथन से यह समझ आता है कि वह खुद को बड़ा जादूगर मानता था किंतु उसकी उम्र कम होने के कारण लेखक ने उसे छोटा जादूगर कहना उचित समझा और यह शीर्षक इस कहानी को सार्थकता प्रदान करती है l कहानी के मुख्य पात्र को चरितार्थ करती है l
छोटा जादूगर का चरित्र-चित्रण – ‘छोटा जादूगर’ कहानी का पात्र छोटा जादूगर आर्थिक विपन्नता से ग्रसित एक ‘स्ट्रीट बॉय’ है जो गलियों और मेलों में अपना जादू दिखाकर पेट पालने के लिए पैसे कमाता है। माँ के प्रति अपना कर्त्तव्य निभाता यह बालक चतुर, चालाक, मधुर व्यवहार और मातृ – प्रेम की झलक कहानी में बार-बार दिखाता है।
छोटा जादूगर चतुराई से मेले में पैसा कमाता है और बीमार माँ के इलाज की चिन्ता उसे सताती है। कथाकार जब उस बालक से मिलता है तो वह उसे शरबत पिलाने ले जाता है तब उसकी वास्तविक स्थिति पाठक के सामने आती है- “तमाशा देखने नहीं; दिखाने निकला हूँ। कुछ पैसे ले जाऊँगा, तो माँ को पथ्य दूँगा। मुझे शरबत न पिलाकर अपने मेरा खेल देखकर मुझे कुछ दे दिया होता, तो मुझे अधिक प्रसन्नता होती ।”
उस छोटे बालक को घर की दयनीय स्थिति के कारण अपना बचपन तो याद ही नहीं अपितु माँ की दवा-दारू की चिंता है ताकि वह स्वस्थ हो जाए। उसकी चतुराई भी कहानी को रूचिकर बनाती है वह कथाकार से आग्रह करता है कि आइए मैं आपको तमाशा दिखाता हूँ ताकि उसे भी कुछ पैसे मिल जाएं। कथाकार के परिवार को वह अपना तमाशा दिखाता है और उसकी श्रीमती जी के द्वारा एक रूपया देने पर खुश हो जाता है। जब वह उसे ‘लड़के’ कहकर बुलाती है तो वह बड़ी चतुराई से उत्तर देता है – “छोटा जादूगर कहिए । यही मेरा नाम है। इसी से मेरी जीविका है।”
छोटा जादूगर व्यवहार कुशल जिससे वह दूसरों के हृदय में अपनी जगह भी बना लेता है । कथाकार भी उसे भूल नहीं पाता और जब-तब उसे मिलता है ताकि उसकी बीमार माँ की स्थिति को जान सके। छोटा जादूगर को वह जब भी मिलता उसे माँ की चिन्ता होती कि बीमार माँ किसी तरह ठीक हो जाए। एक बार उदास मन स्थिति से सड़क के किनारे जादू दिखाता हुआ वह कथाकार से मिलता है तब वह बताता है कि माँ ने कहा है कि आज जल्दी आ जाना मेरी घड़ी समीप है और अन्ततः उसकी माँ की मृत्यु हो जाती है। वह माँ से लिपटकर रोता है।
संक्षेप में हम कह सकते हैं कि छोटा जादूगर कहानी का पात्र छोटा जादूगर अपनी आर्थिक स्थिति के कारण समय से पहले जिम्मेवारियों के बोझ तले दबा हुआ है और अपनी चतुराई, मधुरता और मातृ – प्रेम के फलस्वरूप माँ का और अपना पेट पालता है। वह कहानी का सशक्त और प्रभावशाली पात्र है l
शब्दार्थ :
कार्निवाल = शहरों में लगने वाला मेला। कलनाद = मधुर ध्वनि।
विषाद = दु:ख, उदासी। आकृष्ट = आकर्षित।
अभाव = कमी। संपूर्णता = सब कुछ होना।
निकम्मा = बिना काम का। वाणी = आवाज।
बनावट = बना हुआ। सहमत = राजी।
गर्व = घमंड। तिरस्कार = उपेक्षा, निरादर।
पथ्य = रोगी के अनुकूल भोजन। दीर्घ निश्वास = जोर की साँस।
व्यग्र = बेचैन। पक्का = कुशल, अच्छा।
निशानेबाज = निशाना लगाने वाला। अकस्मात = अचानक।
सुरम्य =सुंदर। वनस्पति = पेड़-पौधे।
उद्यान = बगीचा। कमलिनी = कमल के फूल।
मंडली = मित्रों का साथ। झोला = थैला।
मस्तानी = मतवाली। मिठास = मीठी।
अभिनय = नाटक करना। वाचालता = अधिक बोलना।
शीघ्र = जल्दी। चतुर = चालाक, बुधिमान।
जीविका = रोजी-रोटी का साधन। लताकुंज = बेलों का समूह।
संध्या = शाम। अस्ताचलगामी सूर्य = छिपता हुआ सूरज।
साँय-साँय = तेज हवा का शोर। स्मरण = याद आना।
वातावरण = परिवेश। प्रसन्नता = खुशी। चेष्टा = प्रयत्न।
आश्चर्य = हैरानी। स्फूर्तिमान = फुर्तीला। अविचल = स्थिर।
माप = नापना। साधन = उपकरण। अनुपात = नाप-तोल।
तुलना = फर्क। पथ = रास्ता। दुर्बल = कमजोर। स्तब्ध = हैरान।
उज्ज्वल = स्वच्छ, साफ। समग्र = सारे। बटोरना = इकट्ठा करना। जगमगा = चमकना।
विनोद = मजाक। गंभीर = गहरी। धैर्य = सहनशीलता। मैला = गंदा। निर्मल = स्वच्छ।