Thakur ka kuan by premchand
महत्वपूर्ण प्रश्न एवं उत्तर
Q.1 ठाकुर का कुआं कहानी का उद्देश्य क्या है?
उत्तर – प्रेमचंद जी ने ‘ठाकुर का कुआँ’ कहानी के माध्यम से हमारे समाज में व्याप्त जातिप्रथा की सबसे घृणित परंपरा छुआछूत के कारण तिरस्कार, अपमान और मानवीय अधिकारों से वंचित जीवन जी रहे अछूतों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को बयां किया है. ‘ठाकुर का कुआँ’ स्वच्छ पानी के लिए तरसते अछूत जीवन की वास्तविक कहानी है.
Q.2 गंगी और जोखू के सामने क्या समस्या थी?
उत्तर – गंगी का पति जोखू बहोत बीमार था वह प्यास न रोक सकने के कारण खराब पानी को भी पीने को तैयार हो गया था। लेकिन गंगी वह पानी नहीं पीने देना चाहती थी। वह जानती थी कि खराब पानी पीने से वह और बीमार हो जाएगा। उस वक्त जाति-प्रथा एवम् छुआछूत जैसी कुप्रथा ज़ोरों में था।
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1. “गरीबों का दर्द कौन समझता है।” यह किसने किससे कहा ?
उत्तर – जोखू ने गंगी से कहा ।
2. हम क्यों नीच है और ये लोग क्यों ऊँच है यहाँ किस सामाजिक समस्या की ओर संकेत है ?
उत्तर – जाति प्रथा की ओर संकेत है।
3. गंगी ठाकुर के कुएँ से पानी ले नहीं सकती थी। क्यो ?
उत्तर – गंगी निम्न जाति की मानी जाती थी, इसलिए ऊँची जातिवालों के कुएँ से पानी लेने की अनुमति नहीं थी ।
4. ठाकुर और साहू के कुएँ से पानी लेने की इजाज़त क्यों नहीं थी ?
उत्तर – छुआछूत की प्रथा के कारण।
5. सिर्फ ये बदनसीब पानी नहीं भर सकते l क्यों ?
उत्तर – क्योंकि वे नीची जाति के थे l
6. गंगी ने जोखू को गंदा पानी पीने नहीं दिया। क्यों ?
उत्तर – क्योंकि गंगी जानती थी कि खराब पानी पीने से पति की बीमारी बढ़ जाएगी।
7. गंगी यह नहीं जानती थी कि पानी को उबाल देने से उसकी खराबी जाती है। यहाँ किस सामाजिक वास्तविकता प्रकट होती है ?
उत्तर – यहाँ गंगी की अशिक्षित हालत का संकेत है। निम्नजाति के लोग शिक्षा से वंचित रह जाते हैं। इसलिए वे कई अंधविश्वासों के शिकार भी होते हैं।
8. ” यह पानी पिओगे कैसे ?” गंगी ने ऐसा क्यों पूछा?
उत्तर – क्योंकि पानी से सख्त बदबू आ रही थी।
Q10. ‘ठाकुर के कुएँ पर कौन चढ़ने देगा?’ -गंगी क्यों इस प्रकार सोचती है?
उत्तर: यहाँ जाति-पाँति की ओर संकेत है। जाति-पाँति एक विकट समस्या है। जाति-पाँति के कारण कुछ लोगों को अछूत समझे जाते हैं। ठाकुर ऊँची जाति के हैं। निम्न जाति के लोगों को उनके कुएँ से पानी भरने की अनुमति नहीं थी । जाति के कारण उत्पन्न गंगी की विवशता यहाँ स्पष्ट होती है।
Q.11 ‘मैदानी बहादुरी का तो अब न ज़माना रहा है न मौका। कानूनी बहादुरी की बातें हो रही हैं।’ – इसका मतलब है?
उत्तर: पहले शारीरिक शक्ति के बल पर समाज के ऊँचे लोग अपना कार्य किया करते थे। लेकिन अब वे सिफारिश के बल पर कानून को अपने अनुकूल बना लेते हैं। कानूनमुकदमे के ज़रिए गरीबों को परास्त करते हैं। यही इस कथन का मतलब है।
Q.12 ‘गंगी दबे पाँव कुएँ की जगत पर चढ़ी, विजय का ऐसा अनुभव उसे पहले न हुआ था । ‘ – गंगी को ऐसा अनुभव क्यों हुआ होगा?
उत्तरः गंगी का मन सामाजिक रीति-रिवाज़ों के विरुद्ध संघर्ष करनेवाला है। चुपके से सही, वह उच्च वर्ग के लोगों को परास्त करना चाहती है। शुद्ध पानी की ज़रूरत अब उसकी विवशता है।
अब सारी बाधाओं को तोड़कर वह पानी भरने जा रही है। उसके विचार में यह उच्च वर्ग के लोगों के ऊपर उसका विजय हैं।
प्रश्ना 13. “शेर का मुँह इससे भयानक न होगा” यहाँ ठाकुर के दरवाज़े की तुलना शेर के मुँह से क्यों की गई है?
उत्तर: शेर एक खूंखार जानवर है। इसके मुँह के सामने पड़नेवालों को बचने की उम्मीद नहीं। इसी प्रकार ठाकुर का घर भी गंगी जैसे लोगों के लिए डरावना जगह है। ठाकुर के सामने पड़ने पर बचना मुश्किल है। इसलिए ऐसी तुलना की गई है।
प्रश्न 14. गंगी के चरित्र पर टिप्पणी लिखें।
उत्तर: गंगी प्रेमचंद की विख्यात कहानी ‘ठाकुर का कुआँ की पात्र है। वह एक साधारण गृहिणी है। गरीब परिवार की सदस्या है। जाति से निम्न वर्ग की है। वह कई प्रकार की सामाजिक कुरीतियों की शिकार है l वह सारी पाबंदियों को तोड़कर, ठाकुर के कुएँ से पानी भर लाने का साहस करती है। रात के अंधेरे में वह पानी लेने जाती है। उसकी चिंताएँ उसके मन के विद्रोह को व्यक्त करती हैं। अंत में वह कुएँ के जगत के पास आ जाती है। उस समय उसका मन एक विजेता जैसा अनुभव करता है। लेकिन परिस्थितियाँ उलटती हैं, ठाकुर जग जाते हैं और गंगी को विवश भागना पड़ता है। गंगी एक ही समय परिस्थितियों से विवश औरत, विद्रोह मन रखनेवाली नारी एवं शांत के प्रति प्यार रखनेवाली गृहिणी आदि का प्रतिनिधित्व करती है।
प्रश्ना 2. ‘जाति प्रथा एक अभिशाप है’ – विषय पर आलेख तैयार करें और संगोष्ठी चलाएँ।
उत्तर:
जाति प्रथा : एक सामाजिक अभिशाप
जाति प्रथा समाज की एक विकट समस्या है। इसके कारण समाज में असमानता, एकाधिकार, विद्वेष आदि दोष उत्पन्न हो जाते हैं। जाति प्रथा की सबसे बड़ा दोष छुआछूत की भावना है। इसके कारण संकीर्णता की भावना का प्रसार होता है और सामाजिक राष्ट्रीय एकता में बाधा आती है।
जाति के नाम पर निम्न वर्ग के लोगों को कई प्रकार की यातनाएँ सहनी पड़ती हैं। उन्हें अपनी जिंदगी स्वतंत्र रूप से जीने में बाधा होती है। आम जगहों को इस्तेमाल करने से उनके लिए पाबंदी है। निम्न वर्ग के लोगों से छुआ पानी पीना, उनका बना भोजन खाना, रास्ते में दूसरों के सामने पड़ना आदि बातों को बुरा समझा जाता है।
ठाकुर का कुआँ कहानी का का सारांश : –
जोखू गाँव के गरीब वर्ग का व्यक्ति है, वह कई दिन से बीमार है। रात में उसे प्यास लगती है, गला सूख रहा होता है। वह अपनी पत्नी गंगी से पानी माँगता है। गंगी पानी देती है, परंतु जैसे ही जोखू उसे पीने के लिये मुँह से लगाता है तो बड़ी तेज़ बदबू आती है। गंगी देखती है तो उसे भी बदबू आती है, वह कहती है – लगता है कुएँ में कोई जानवर गिरकर मर गया है। यह पानी पीने लायक नहीं है। इसे पीने से बीमारी बढ़ जायेगी।’
थोड़ी देर बाद जोखू कहता है कि अब प्यास से रहा नहीं जाता, ला वही पानी, नाक बन्द करके पी लूँ। पति की अधीरता देख गंगी कहती है कि मैं दूसरा पानी लाने जाती हूं। जोखू कहता है दूसरा पानी कहाँ से लायेगी ? गंगी कहती है ठाकुर और साहू के दो कुएँ है क्या एक लोटा पानी न भरने देंगे? जोखू कहता है ‘हाथ-पाँव तुड़वा आयेगी और कुछ न होगा। बैठ चुपके से। ..गरीबों का दर्द कौन समझता है। हम तो मर भी जाते हैं तो कोई दुआर पर झाँकने नहीं आता, ……. ..ऐसे लोग कुएँ से पानी भरने देंगे ?
रात के नौ बजे जब सारे गाँव में अँधेरा छा गया है और लोग प्रायः सो गये हैं तो वह घड़ा-रस्सी लेकर ठाकुर के कुएँ पर पानी भरने जाती है, परन्तु उस समय भी कुछ निठल्ले लोग ठाकुर के दरवाजे पर बैठे रहते हैं। वह उनके जाने का इंतजार करती हुई जगत की आड़ में छुपी बैठी रहती है। इतने में ठाकुर परिवार की दो स्त्रियाँ कुएँ पर पानी भरने के आ जाती हैं। गंगी झट से एक पेड़ की आड़ में अँधेरे में छिप जाती है।
स्त्रियाँ पानी भरकर वापस चली जाती हैं। ठाकुर के दरवाजे पर बैठे निठल्ले भी अपने-अपने घरों को चले जाते हैं। ठाकुर भी दरवाजा बन्द कर अन्दर सोने के लिए चला जाता है। गंगी चुपचाप बहुत सावधानी से दबे पाँव जगत पर चढ़ती है। रस्सी का फंदा घड़े में डालकर उसे इतने धीरे-धीरे कुएँ में डुबोती है कि जरा-सा भी शब्द न हो। घड़े के भर जाने पर जल्दी-जल्दी परंतु अत्यन्त सावधानीपूर्वक उसे ऊपर खींचती है। घड़ा कुएँ के मुँह तक ऊपर आ जाता है, गंगी घड़े को पकड़ने के लिये जैसे ही झुकती है ठीक उसी समय ठाकुर साहब का दरवाजा खुल जाता है। घबराहट के कारण गंगी के हाथ से रस्सी छूट जाती है घड़ा ‘धड़ाम’ की आवाज के साथ रस्सी सहित कुएँ में गिर जाता है। उधर से ठाकुर की आवाज ‘कौन है? कौन है?’ सुनाई देती है। गंगी तुरन्त कुएँ की जगत से कूदकर भागती है। उसे अब यह भय है कि अगर वह कहीं पकड़ी गयी तो पूरा ठाकुर मुहल्ला उसे मारकर अधमरा कर देगा। किसी प्रकार वह भागकर घर आती है और घर आने पर देखाती है कि जोखू वही मैला-गंदा और बदबूदार पानी पी रहा है।