“वह जो मैं खो चुकी थी मुझे आखिरकार मिल ही गया”

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कहानी लेखन
           “वह जो मैं खो चुकी थी मुझे आखिरकार मिल ही गया”

कहानी (i)

यह बात मेरे बचपन की है तब मुझे हर एक चीज से लगाव हो जाता था l हर एक चीज से मेरा इमोशनल जुड़ाव हो जाता था l
मैं बहुत भावुक किस्म की रही हूं l मुझे मेरी मां से उनकी चीजों से और उनके द्वारा दिए गए उपहारों से मुझे बहुत लगाव है l
एक बार की बात है एक बार की बात है तब मैं शायद पांचवी वर्ग में पढ़ती थी l मेरे जन्मदिन पर मेरी मां ने मुझे एक सुंदर सा डायरी गिफ्ट किया था l मुझे वैसे तो लिखने का शौक बिल्कुल भी नहीं था लेकिन वह डायरी मुझे बहुत प्यारी थी l मुझे जब भी मौका मिलता मैं कुछ ना कुछ उसमें लिखती थी l

धीरे-धीरे लिखने की आदत हुई और मैं अपने हर रोजमर्रा की कामों को और जो भी मेरे साथ घटनाएं घटती थी मैं उसमें लिखा करती थी और साथ ही मुझे आगे क्या करना है इसकी योजना भी मैं उसी में लिखा करती थी l
इसी तरह यह प्रक्रिया चलता रहा l साल बीते मुझे दोबारा मां ने मेरे जन्मदिन पर उपहार दिया l फिर से साल बिता फिर मां ने मुझे उपहार दिया अब मैं सातवीं कक्षा में पहुंच चुकी थी l इसी बीच किन्हीं कारणों से मेरी लिखने की आदत छूट चुकी थी किंतु वह डायरी जिसमें मैंने लगभग अपनी जिंदगी की आधी प्लानिंग कर ली थी हमेशा अपने पास रखती थी किंतु एक दिन मुझे कुछ दिनों के लिए घर से बाहर जाना पड़ा और जब वापस लौटी तो मुझे वह डायरी नहीं मिली l मां से बहुत पूछने पर भी मां नहीं बता सकी कि वह डायरी कहां है!
मां ने साफ कह दिया कि “साफ सफाई में कहीं इधर रख दिया होगा l एक डायरी ही तो थी ,वह भी पुरानी, खो गया तो क्या हुआ नई ला दूंगी l ” लेकिन मां को कैसे समझाऊं कि मेरे लिए वह बस डायरी नहीं थी l

                      मैं बहुत उदास हो गई मुझे ऐसा लगने लगा कि जैसे कुछ छूट सा गया कुछ ऐसा जैसे जिंदगी  खो गई l बहुत अधूरा अधूरा सा  लगने लगा था l
 मेरे इस बेचैनी की दो वजह थी  पहला कि वह डायरी मुझे मेरी मां ने दिया था , दूसरा कि उसमें मैंने बहुत सी बातें लिखी थी l अब तो ऐसा लगने लगा था कि मैं कुछ कर ही नहीं पाऊंगी मेरी सारी योजनाएं बेकार हो गई जो मैंने सोचा था वह सब हवा हो गया l  अब मेरा किसी काम में मन नहीं लग रहा था l दिन बीते,  महीने बीते,  साल बीते मैंने लिखना तो छोड़ ही दिया था लेकिन उस डायरी को भुला नहीं पाई थी l
 लेकिन फिर एक दिन मैंने क्या देखा कि हमारे पुराने अलमीरा में कपड़ों के पीछे वह डायरी पड़ी हुई है l मैं तो अवाक रह गई l मेरे तो खुशी का ठिकाना ना रहाl  ऐसा लगा मानो मुझे एक नई जिंदगी मिल गई या कुछ करने का मकसद मिल गया l
                                                                                               अगर वह डायरी कोई  इंसान होता तो मैं उसे बताती कि न जाने मैंने उसे कहां-कहां ढूंढा ,  कितना इंतजार किया ,  कितना याद किया उसे अब से मैं हर एक चीज को संभाल के रखूंगीl  क्योंकि कुछ भी हो अगर कोई चीज खो जाती है तो उसे वापस पाना बहुत मुश्किल है चाहे वह एक डायरी हो चाहे वह  बचपन हो इसलिए हर एक समय को अच्छे से जीना चाहिए उसे संभाल के रखना चाहिए l वह जो मैं खो चुकी थी आखिरकार मुझे मिल ही गया और मैं बहुत खुश हूं l l 

कहानी (Ii)

                    “वह जो मैं खो चुकी थी मुझे आखिरकार मिल ही गया”

गर्मियों की छुट्टी चल रही थी l मैं अपने  पूरे परिवार के साथ नानी के घर घूमने गई थी । मेरी नानी बहुत प्यारी है वह मुझे बहुत प्यार करती है और मैं भी। हम सभी लगभग वहां 15 दिन रुके थे l 

                     इन दिनों में मैने वहां बहुत मस्ती की थीl  हम लोगों ने बहुत जगह घूमा l पहाड़ घूमा  नदियां देखी और फिर जब हमारा समय हो चला अपने घर आने का तब मुझे नानी ने एक बहुत ही सुंदर सा लॉकेट गिफ्ट किया l वह सच में बहुत प्यारा था l वह लॉकेट मुझे बहुत पसंद आया और मैं उसे लेकर अपने घर चली आई l 

                                   कुछ दिन बाद हमारा विद्यालय फिर से खुल गया और मैं अपने दोस्तों के साथ विद्यालय जाने लगी l मेरे सभी दोस्तों को मेरा यह लॉकेट बहुत पसंद आया l  सब बहुत तारीफ कर रहे थे  और मुझे बहुत खुशी हो रही थी कि मेरे पास इतना प्यारा  लॉकेट है जो सबको पसंद है l  फिर एक दिन जब मैं विद्यालय में थी ; छुट्टी होने ही वाली थी कि उसी समय बहुत तेज बारिश हो रही थी l मैं जल्दबाजी में अपने सारे सामानों को बाग में भरने लगी और बस की ओर तेजी से भागी l  इसी भागदौड़ में मुझे पता ही नहीं चला की कब मेरे गले से वह लॉकेट गिर गया l मैं भाग कर बस में चढ़ गई थी और घर पहुंची तब भी मुझे कुछ होश नहीं था कि मुझसे क्या खो गया है!  

 शाम को अचानक मैंने देखा कि मेरे गले में वह लॉकेट नहीं है मैं वही ठिठक के रह  गई l मुझे कुछ समझ में नहीं आने लगा कि यह कैसे हो गया l मेरे हाथ – पैर कांपने लगे l मुझे बहुत रोना भी आया l  मैं अपने मां के सामने बहुत रोई और एकदम निराश हो गई कि अब तो वह लॉकेट मुझे कभी नहीं मिलने वाला जो मेरी नानी ने मुझे बड़े प्यार से दिया था l 

इस बात को लगभग 15 दिन हो गए थे मैं बहुत उदास रहती थी स्कूल में भी मुझे मन नहीं लगता था और बहुत सारे दोस्त तो  मेरा मजाक भी उड़ाते थे l

1 दिन की बात है मैं देखती हूं कि मेरे लॉकेट जैसा ही एक लॉकेट एक बच्ची पहनी हुई है मुझे उससे पूछने की हिम्मत नहीं हो रही थी पर मुझसे रहा नहीं गया l मैंने उससे पूछा की ये लॉकेट तुम्हें कहां से मिला तो शुरू  में तो उसने कोई जवाब नहीं दिया तो मुझे थोड़ा शक हुआ कि कहीं यह मेरा ही लॉकेट तो नहीं l  अगले दिन मैं अपने दो दोस्तों के साथ उससे मिली और उससे पूछी कि अगर यह लॉकेट तुम्हें कहीं मिला है तो कृपया करके मुझे दे दो यह मेरी नानी के द्वारा दिया हुआ अनमोल तोहफा था जो मुझे गुम हो गया था l शायद उसे मेरी बात समझ आई और मेरी बेचैनी भी l 

उसने कहा कि हां एक बार वह बगीचे में टहल रही थी तब उसे यह लॉकेट गिरा हुआ  मिला था l उसे पसंद आया तो उसने रख लिया था l फिर उसने मुझे वह लॉकेट लौटा दी l मुझे मेरी खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा l  मैंने उसे बहुत-बहुत धन्यवाद किया l मैं तो खुशी से झूम  उठी थी कि आखिरकार मुझे वह मिल ही गया जो मैं खो चुकी थी l मैं तो निराश हो चुकी थी कि अब तो यह मुझे कभी नहीं मिलने वाला  पर मैंने इस घटना से यह सबक भी सीखी कि जो हमें सबसे प्यारा होता है , हमें उसका बहुत खास ख्याल रखना चाहिए l अन्यथा एक बार वह खो जाए तो  पछताने के  सिवा  हमारे हाथ में कुछ नहीं बचता I 

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